क्यों खिसक रही , पैरों के तले की ज़मीं
क्यों गुदगुदी करने लगी है ज़िन्दगी
मन हो रहा है क्यों चंचल
बरसों लगे है क्यों पल -पल
क्यों गुनगुनी , लगने लगी है चाँदनी
क्यों खिसक रही , पैरों के तले की ज़मीं
क्यों गुदगुदी करने लगी है ज़िन्दगी
साँसे हुई हैं क्यों आवारा
दिल हो गया है क्यों बेचारा
क्यों चाशनी लगने लगी है तेरी हँसी
क्यों खिसक रही , पैरों के तले की ज़मीं
क्यों गुदगुदी करने लगी है ज़िन्दगी