आगे बढ़ने की होड़ ने पीछे लौटने के सारे रास्ते बंद कर दिए थे. ऊँचा चढ़ने की कवायद में हर सीढ़ी गिरा दी गई थी . हर कदम के साथ पीछे की दुनिया दूर और आगे की दुनिया करीब आती गई . फ़िर एक दिन मंजिल पैरो तले छटपटा रही थी और कदम सबसे ऊँचे पायदान पर . मुड़कर देखा तो बाकि लोग काफी धुंधले नज़र आ रहे थे. इन धुंधली तस्वीरों में गैरों के अलावा अपने भी थे .
वो उंगलिया जिन्होंने चलना सिखाया, वो भी थी .
वो हथेलिया जो हर थपकी के साथ ,
परियों के देश में ले जाती वो भी थी .
वो आँचल जो थपेडों से बचाता था वो भी था.
वो गलियां जहाँ बरसात का पानी ,
तलवों की छाप में ठहरता था वो भी थी.
लेकिन खता किसकी थी ?
कुसूरवार कौन था ?
कामयाबी कीमत नही मांगती ?
वो हथेलिया जो हर थपकी के साथ ,
परियों के देश में ले जाती वो भी थी .
वो आँचल जो थपेडों से बचाता था वो भी था.
वो गलियां जहाँ बरसात का पानी ,
तलवों की छाप में ठहरता था वो भी थी.
लेकिन खता किसकी थी ?
कुसूरवार कौन था ?
कामयाबी कीमत नही मांगती ?
चलना सिखाने वाली इन्ही उंगलियों ने एक दिन ,
घर से बाहर जाने का रास्ता दिखाया था .
थपकियाँ देने वाली हथेलियों ने एक दिन ,
पीठ पर धौल जमाई थी .
इसी आँचल ने कामयाबी की दुवायें भी मांगी थी .
तब निकलते वक्त इन्ही गलियों ने ,
धूल उड़ाया था सहमे चेहरे पर .
शायद ये वही धूल है ,
जिसकी चादर आंखों को धुंधला कर गई है .
घर से बाहर जाने का रास्ता दिखाया था .
थपकियाँ देने वाली हथेलियों ने एक दिन ,
पीठ पर धौल जमाई थी .
इसी आँचल ने कामयाबी की दुवायें भी मांगी थी .
तब निकलते वक्त इन्ही गलियों ने ,
धूल उड़ाया था सहमे चेहरे पर .
शायद ये वही धूल है ,
जिसकी चादर आंखों को धुंधला कर गई है .