Sunday, September 7, 2008

दर्द की खेती


दर्द की खेती आओ करले हम दोनों
नैनो में बारिश को भर ले हम दोनों

यादों के पौधों को काटें
अपने -अपने हिस्से बाटें
हरी शाख , सिरहाने रखकर
वक्त को कोसे, नींद को डाटें
फूँक मार के चाँद बुझा दे हम दोनों
दर्द की खेती आओ करले हम दोनों

आंसू से सपनो को सींचे
गरम साँस से फसल पकाएं
जिस्म का चूल्हा , दिल की लकड़ी
ताज़ा सा कोई घाव बनायें
नए -पुराने ज़ख्म सिला ले हम दोनों
दर्द की खेती आओ करले हम दोनों

Monday, September 1, 2008

कोसी का महाप्रलय


बाछों का खिलना शायद 10 फुट गहरे पानी में नाव का दिखना
बाछों का खिलना शायद राहत सामग्री गिराते हेलीकॉप्टर की आवाज़
बाछों का खिलना शायद पुनर्वास की मोटी रकम की घोषणा
बाछों का खिलना शायद 2 मीटर बरसाती 1 लीटर मिटटी का तेल
बाछों का खिलना शायद राहत शिविर में जिंदा बच्चे का पैदा होना
बाछों का खिलना शायद अपनी बकरी छोड़ ख़ुद पेड़ पर चढ़ जाना
बाछों का खिलना शायद एक पैकेट चिवडा और गुड या दोने में खिचडी
बाछों का खिलना शायद महाप्रलय में दूर से दिखती मद्धम रौशनी
समझ नही पाया अब तक मैं बाछों का खिलना
शायद कई बार मेरी बांछे खिली भी हो, पर दिखी नही आज तक
शायद तब जब तुमने आसुओं में अकेला छोड़ दिया था मुझे
एक मुआवजे के इंतज़ार में