Sunday, November 9, 2008


पागल वक्त का झोंका आया
बिखर गए यादों के दाने
राख-राख सब हुए जलावन
फूंक दिए सब नए -पुराने
इश्क की हंडिया फ़ुट गई है...

उम्मीदें भी भूखी सोई
दिल के गले लिपट के रोई
चीख - चीख के उसे पुकारा
पर न आया आँख से कोई
नैन से बारिश रूठ गई है ...

सुस्त हुए आहों के झटके
ख्वाब कही जंगल में अटके
बेचारी हो गई ज़िन्दगी
आस - साँस को दर-दर भटके
साँस की माला टूट गई है...